मैँ अगर पिछे मुड कर देखता हूँ तो अाज के दौर के मुकाबले में ९० का दशक मेरे जीवन का गोल्डन टाईम था, ऐक शानदार दौर जो मेरे समकालिन मित्रो ने भी जीया होगा....नब्बै के दशक मे चार चीजे आम तौर से प्रसिद्ध थी पतंग बाजी कबूतर बाजी,क्रिकेट के प्रति दिवानगी (मार्टिन क्रो, मार्क ग्रैटबैच,इमरान खान,कपील देव,रिचर्ड हैडली,इयान बाथम, डेसमंड़ हैंस आदि नाम छाया रहता था) छज्जे की आशिकी (बडे भाईयो को देखता था मोबाईल न होने के कारण हम लव लैटर सप्लायर का काम करते थे) और कॉमिक्स का क्रैज ( चाचा चौधरी राम रहिम,फौलादी सिंह काला प्रेत,शेरा,शाका पुरे रंग मे थे)....बस यही दौर था जब मेरा कॉमिक्स की दुनिया मे प्रवेश हुआ....
मुझे आज भी याद है वह दिन जब गर्मियो की छुट्टिया चल रही थी और मै अपनी बुआ के यहा "आसाम" मे था २ साल वहाँ रहने के बाद (१९८८मे वहाँ चला गया था मात्र ६ साल की आयु मे) ऐसी जीद पकडी खाना पीना छोड दिया की घर जाना है थक हार कर दादा (बंगालियो मे बडे भाई को दादा बोलते है) मुझे रुड़की ले आऐ
रुड़की आने के करीब हफ्ता भर ही बीता होगा की ऐक रात मेरा सबसे बडा भाई प्रणब कॉमिक्स लाया जो उसने रात को पढ़ी, सुबह करीब ५ बजे कॉमिक्स पर मेरी पडी तो उतसुक्ता वश मैने पढ़नी चाही लेकिन आसाम मे रहने के कारण अंग्रैजी और बंगाली,असमिया मे पारंगत हो चुका था हिन्दी पढने मे कठिनाई होने लगी थी तो मेरे से बडे भाई पंकज ने स्टोरी पढ़नी शुरु की और मै सुनने लगा भाई क्या बवाल स्टोरी और हंस हंस कर लोट पोट करने वाली कहानी थी वह कॉमिक्स ही मेरे जीवन की प्रथम कॉमिक्स थी जो मैने पढ़ी तो नही लेकिन इसे पढ़ी हुई ही मानता हुँ! और वह कॉमिक्स थी "बांकेलाल और मुर्दा शैतान" बस इस कॉमिक्स के बाद तो मुझे कॉमिक्स पढ़ने का ऐसा चस्का लगा की छुटे नही छुटता था....नागराज की पहली कॉमिक्स जो मेरे हाथो मे आयी थी वह थी "नागराज की कब्र" नागराज की इस कॉमिक्स के बाद नागराज को और जानने की इच्छा हुई तो मैने वाकई में नागराज की कब्र ही खोद दी फिर तो नागराज का लगभग सारा कलैक्श इक्कठा कर लिया था वह दौर सिर्फ राज कॉमिक्स का ही नही था वह समय कॉमिक्स का गोल्डन टाईम था लगभग हर प्रकार की ऐडिशन की कॉमिक्स मैने पढी डायमंड,तुलसी,मनोज,दुर्गा,फोर्ट,गोयल,चुन्नू,राधा, किंग,नूतन ,पवन आदि आदि लगभग सभी कॉमिक्स पढी मेरे पसंदिदा कॉमिक्स करैक्टरो की लिस्ट हमेशा ही लंबी रही है क्योकी मैने हर तरह की कॉमिक्स पढी ! लेकिन मै हमेशा नागराज का दिवान रहा आंठवीं तक नागराज की तरह बालो स्टाईल बना स्कुल जाया करता था कई बार सुभाष सर और नरेन्द्र सर के रैपटे खाऐ पर क्या मजाल तो बाल का स्टाईल भी बिगडने दिया हो....स्कुल की किताबो के बीच में कॉमिक्स छिपाने का तरिका तो सिर्फ मुझे ही मालुम था जो अच्छो अच्छो के पकड़ मे नही आता था....
ऐक दौर मे राज कॉमिक्स ने कई प्रतियोगिता भी जारी की जिसमे मैने और मेरे भाई ने कई ईनाम की कब्जाऐ...
जिसमे से ऐक प्रतियोगिता मे मे राज कॉमिक्स ने "डोगा" की कॉमिक्स का कोई कॉमिक्स टाईटल का नाम लिख कर भेजने को कहाँ था....जिसमे से मैने दो टाईटल भेजे थे जिन पर राज कॉमिक्स वालो ने डोगा की कॉमिक्स भी छापी और वह दो कॉमिक्स थी "आखिरी गोली" और " झबरा" लेकिन तब छोटा होने के कारण चिट्ठी कैसे लिखते पोस्ट कैसे करते है का पता नही था तो मेरे भाई पंकज ने अपने नाम से पोस्ट कर दिया तो कॉमिक्स के लास्ट के पन्ने पर पंकज दास का नाम छपा और मैं मन मसोस कर रह गया हाँ ईनाम में ऐक पर्स और फाईटर टोड्स का ऐक मनी बैग मिला था जो सदैव मेरे कब्जे मे रहा अभी कुछ माह पुर्व माँ का देहांत होने पर जब माँ का बक्सा खोला तो फाईटर टोड्स का मनी बैग मिला तो वह पुरा काल मेरी आँखो के आगे घुम गया.......लेकिन अब वह रस नही रहा कॉमिक्स जगत अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है यह सोच कर ही बदन पर सिरहन दौड जाती है....कभी रुड़की की किसी भी गली मे निकल जाते थे तो परचुन की दुकान में भी कॉमिक्स टंगी दिखाई दे जाती थी अब न कॉमिक्स है न पढ़ने वाले बच्चे.....अब जो थोड़ी बहुत कॉमिक्स छपती है उस के अंतिम पीड़ी ही हम है. लिखने को बहुत कुछ है लेकिन अब थक गया हुँ....
शायद मेरे समकालिन मित्रो की यही कहानी होगी