Monday, September 18, 2017

Camlin Supercops (Tinkle)


Camlin Supercops Adventure (Tinkle Magazine)


This month's episode will see the Camlin Supercops give the test of their lives! Say hello to THE EXAMINATOR! This tyrannical half-robot, half-man, full-villain is out to end the Camlin Supercops once and for all, with a tirade of tiresome questions! Oh, and LASERS! Read the latest episode of @Kokuyo Camlin Supercops

Comics Memories (Deepak)

Courtesy - Mr. Deepak Jangra, Group - Comics Fans Society

मित्रों जब मैं छोटा था तब मेरे पिताजी हर रविवार को दैनिक ट्रिब्यून अखबार लेकर आते थे। उस अखबार में एक 4 रविवारीय पृष्ठ होते थे। उन्ही में से एक पृष्ठ पर डायमण्ड कॉमिक्स के पात्र रमन की एक कहानी होती थी। कॉमिक्स से सर्वप्रथम परिचय मेरा इसी माध्यम से हुआ। हमारे परिवार में मेरे चाचा जी भी कॉमिक्स पढ़ते थे जो की आज भी मुझसे लेकर पढ़ते हैं। उन्ही की लाई हुई 2 कॉमिक्स घर पर पड़ी रहती थी जिनके नाम मुझे अबतक याद हैं दोनों मनोज कॉमिक्स थी। एक थी हवलदार बहादुर और चिन चिन पोटली और दूसरी थी अजगर का संसार।

मुझे आज भी याद है की जब अजगर का संसार कॉमिक्स के कवर पृष्ठ के अंदर की ओर टोटान की आगामी कॉमिक्स का कवर छपा होता था जिसमे टोटान को तो बांध रखा होता है और उसके सामने एक मकड़ी जैसा प्राणी होता है, ईसके अलावा और भी भुतहा चित्र होते हैं, उन चित्रों को जब भी मैं देखता था तब मुझे एक अलग ही दुनिया का, एक अलग ही संसार का अहसास होता था। यकीनन वो कॉमिक्स का ही संसार था, कॉमिक्स की ही दुनिया थी वो। उपरोक्त दोनों कॉमिक्स में से मैने हवलदार बहादुर और चिन चिन पोटली पढ़ी थी। उस कॉमिक्स की कहानी के मुख्य बिंदु आज भी मुझे याद हैं। बेदी जी द्वारा किया गया चित्रांकन, उटपटांग चेहरे और उन पर की गई अलग अलग रंगों से कलरिंग ने इस कदर दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ी थी की आज तक मैं उन्हें भूल नही पाया हूँ। मेरे कॉमिक्स प्रेम के प्रति मेरे घरवालों का जो नजरिया था वो बाकि कॉमिक्स प्रेमियों से अलग नही था। यानि की नजरिया नकारात्मक था। घरवालों की नजर में कॉमिक्स एक समय को बर्बाद करने वाली और पढ़ाई से दूर ले जाने वाली चीज थी। घरवालों के इसी नजरिये के कारण ही कई बार कॉमिक्स छुप कर पढ़नी पड़ती थी और छुपाकर रखनी पड़ती थी। कई बार घरवालों मेरी कई कॉमिक्स जब्त भी की जो की फिर कभी भी मुझे प्राप्त नही हुई। अब घरवालों का नजरिया पहले जैसा नही है यही कारण है मेरा कॉमिक्स कलेक्शन घर पर सुरक्षित है।

कॉमिक्स कलेक्शन की अगर बात की जाए तो बचपन में सिर्फ कॉमिक्स पढ़ने पर ही जोर दिया था मैने, क्योंकि उस समय उतने पैसे नही होते थे की अपना कलेक्शन किया जाए। फिर बीच में मैं कॉमिक्स से थोड़ा दूर हो गया था। 2014 में मैने कलेक्शन फिर से शुरू किया। मेरी पसन्दीदा कॉमिक्स कम्पनी की अगर बात की जाए तो मुझे अब तक प्रकाशित कॉमिक्स के आधार पर मनोज और राज ही सबसे अच्छी लगती हैं। राज कॉमिक्स को मैं पसन्द करता हूँ सुपरहीरोज, थ्रिल हॉरर सस्पेंस, जनरल कॉमिक्स के कारण और मनोज कॉमिक्स को उनकी नॉन हीरोज कहानियों और हवलदार बहादुर, क्रुकबांड आदि कॉमेडी करेक्टर्स के कारण। मेरे कॉमिक्स कलेक्शन में मुझे कॉमिक्स की संख्या तो पता नही है क्योंकि गिने हुये काफी दिन हो गए हैं फिर भी इतना मैं कह सकता हूँ की मेरे कलेक्शन में 1200 से ज़्यादा कॉमिक्स हैं। आज कॉमिक्स संस्कृति की जो हालत है वो उतनी अच्छी तो नही है जितनी पहले होती थी। पाठक बहुत कम हो गए हैं। बिक्री भी उसी अनुपात में घटी है। मनोज, तुलसी आदि कम्पनियाँ बन्द हो चुकी हैं। पाइरेसी ने भी कॉमिक्स इंडस्ट्री का काफी नुकसान किया है। कॉमिक्स संस्कृति के इस हाल के लिये कॉमिक्स कम्पनियों के मालिक लोग भी उत्तरदायी हैं जो वो समय के साथ नही चले। अगर समय के साथ वो कॉमिक्स को कागज के पन्नों से निकाल कर छोटे और बड़े पर्दे पर लेकर जाते तो कॉमिक्स संस्कृति की ये हालत नही होती। वैसे अभी भी देर नही हुई है। हमें आभारी होना चाहिये मित्रों राज कॉमिक्स का जो वो आज भी पाठकों की कम संख्या होने के बाद भी कॉमिक्स का प्रकाशन कर रहे हैं। और अब तो उन्होंने app बनाकर टेकनोलॉजी के साथ भी कदम मिलाकर चलना शुरू कर दिया है। जल्द ही YouTube पर हमें आदमखोर हत्यारा कॉमिक्स पर आधारित फ़िल्म आदमखोर भी देखने को मिलने वाली है। आशा करता हूँ की राज कॉमिक्स अपने इन प्रयासों से भारत में कॉमिक्स संस्कृति वही समृद्धि और वही लोकप्रियता दिलाने में सफल हो जाएगी जो कभी पहले होती थी, शायद समृद्धि और लोकप्रियता पहले से भी ज़्यादा हो जाए। हमे भी राज कॉमिक्स का सहयोग करना चाहिये। कॉमिक्स संस्कृति को समृद्ध बनाने के लिये हमे पाइरेसी का विरोध करना चाहिये और कॉमिक्स हमेशा खुद भी खरीद कर पढ़नी चाहिये और दूसरों को भी खरीद कर पढ़ने के लिये प्रेरित करना चाहिये।

Sunday, September 17, 2017

Memories (Mr. Vikas Das)


मैँ अगर पिछे मुड कर देखता हूँ तो अाज के दौर के मुकाबले में ९० का दशक मेरे जीवन का गोल्डन टाईम था, ऐक शानदार दौर जो मेरे समकालिन मित्रो ने भी जीया होगा....नब्बै के दशक मे चार चीजे आम तौर से प्रसिद्ध थी पतंग बाजी कबूतर बाजी,क्रिकेट के प्रति दिवानगी (मार्टिन क्रो, मार्क ग्रैटबैच,इमरान खान,कपील देव,रिचर्ड हैडली,इयान बाथम, डेसमंड़ हैंस आदि नाम छाया रहता था) छज्जे की आशिकी (बडे भाईयो को देखता था मोबाईल न होने के कारण हम लव लैटर सप्लायर का काम करते थे) और कॉमिक्स का क्रैज ( चाचा चौधरी राम रहिम,फौलादी सिंह काला प्रेत,शेरा,शाका पुरे रंग मे थे)....बस यही दौर था जब मेरा कॉमिक्स की दुनिया मे प्रवेश हुआ....

मुझे आज भी याद है वह दिन जब गर्मियो की छुट्टिया चल रही थी और मै अपनी बुआ के यहा "आसाम" मे था २ साल वहाँ रहने के बाद (१९८८मे वहाँ चला गया था मात्र ६ साल की आयु मे) ऐसी जीद पकडी खाना पीना छोड दिया की घर जाना है थक हार कर दादा (बंगालियो मे बडे भाई को दादा बोलते है) मुझे रुड़की ले आऐ 
रुड़की आने के करीब हफ्ता भर ही बीता होगा की ऐक रात मेरा सबसे बडा भाई प्रणब कॉमिक्स लाया जो उसने रात को पढ़ी, सुबह करीब ५ बजे कॉमिक्स पर मेरी पडी तो उतसुक्ता वश मैने पढ़नी चाही लेकिन आसाम मे रहने के कारण अंग्रैजी और बंगाली,असमिया मे पारंगत हो चुका था हिन्दी पढने मे कठिनाई होने लगी थी तो मेरे से बडे भाई पंकज ने स्टोरी पढ़नी शुरु की और मै सुनने लगा भाई क्या बवाल स्टोरी और हंस हंस कर लोट पोट करने वाली कहानी थी वह कॉमिक्स ही मेरे जीवन की प्रथम कॉमिक्स थी जो मैने पढ़ी तो नही लेकिन इसे पढ़ी हुई ही मानता हुँ! और वह कॉमिक्स थी "बांकेलाल और मुर्दा शैतान" बस इस कॉमिक्स के बाद तो मुझे कॉमिक्स पढ़ने का ऐसा चस्का लगा की छुटे नही छुटता था....नागराज की पहली कॉमिक्स जो मेरे हाथो मे आयी थी वह थी "नागराज की कब्र" नागराज की इस कॉमिक्स के बाद नागराज को और जानने की इच्छा हुई तो मैने वाकई में नागराज की कब्र ही खोद दी फिर तो नागराज का लगभग सारा कलैक्श इक्कठा कर लिया था वह दौर सिर्फ राज कॉमिक्स का ही नही था वह समय कॉमिक्स का गोल्डन टाईम था लगभग हर प्रकार की ऐडिशन की कॉमिक्स मैने पढी डायमंड,तुलसी,मनोज,दुर्गा,फोर्ट,गोयल,चुन्नू,राधा, किंग,नूतन ,पवन आदि आदि लगभग सभी कॉमिक्स पढी मेरे पसंदिदा कॉमिक्स करैक्टरो की लिस्ट हमेशा ही लंबी रही है क्योकी मैने हर तरह की कॉमिक्स पढी ! लेकिन मै हमेशा नागराज का दिवान रहा आंठवीं तक नागराज की तरह बालो स्टाईल बना स्कुल जाया करता था कई बार सुभाष सर और नरेन्द्र सर के रैपटे खाऐ पर क्या मजाल तो बाल का स्टाईल भी बिगडने दिया हो....स्कुल की किताबो के बीच में कॉमिक्स छिपाने का तरिका तो सिर्फ मुझे ही मालुम था जो अच्छो अच्छो के पकड़ मे नही आता था....

ऐक दौर मे राज कॉमिक्स ने कई प्रतियोगिता भी जारी की जिसमे मैने और मेरे भाई ने कई ईनाम की कब्जाऐ...
जिसमे से ऐक प्रतियोगिता मे मे राज कॉमिक्स ने "डोगा" की कॉमिक्स का कोई कॉमिक्स टाईटल का नाम लिख कर भेजने को कहाँ था....जिसमे से मैने दो टाईटल भेजे थे जिन पर राज कॉमिक्स वालो ने डोगा की कॉमिक्स भी छापी और वह दो कॉमिक्स थी "आखिरी गोली" और " झबरा" लेकिन तब छोटा होने के कारण चिट्ठी कैसे लिखते पोस्ट कैसे करते है का पता नही था तो मेरे भाई पंकज ने अपने नाम से पोस्ट कर दिया तो कॉमिक्स के लास्ट के पन्ने पर पंकज दास का नाम छपा और मैं मन मसोस कर रह गया हाँ ईनाम में ऐक पर्स और फाईटर टोड्स का ऐक मनी बैग मिला था जो सदैव मेरे कब्जे मे रहा अभी कुछ माह पुर्व माँ का देहांत होने पर जब माँ का बक्सा खोला तो फाईटर टोड्स का मनी बैग मिला तो वह पुरा काल मेरी आँखो के आगे घुम गया.......लेकिन अब वह रस नही रहा कॉमिक्स जगत अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है यह सोच कर ही बदन पर सिरहन दौड जाती है....कभी रुड़की की किसी भी गली मे निकल जाते थे तो परचुन की दुकान में भी कॉमिक्स टंगी दिखाई दे जाती थी अब न कॉमिक्स है न पढ़ने वाले बच्चे.....अब जो थोड़ी बहुत कॉमिक्स छपती है उस के अंतिम पीड़ी ही हम है. लिखने को बहुत कुछ है लेकिन अब थक गया हुँ....
शायद मेरे समकालिन मित्रो की यही कहानी होगी