Tuesday, January 26, 2016

Green Humour Webcomic


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Mascot for the All India Forest Sports Meet (Green Humour Webcomic)

Saturday, January 2, 2016

*Featured* - मेरा कामिक संग्रह (Sanjay Singh)

7 साल हो गए है हिंदी कामिक्सो से संबंधित विभिन्न आनलाईन ग्रुप्स, फारम, कम्यूनिटिस, इत्यादि मे एक सक्रिय कामिक फैन के तौर पर विचार-विमर्श, परिचर्चा, इत्यादि करते हुए। हिंदी कामिक्सों से जुडे हुए कई सारे पहलओ पर अपने विचारो का रखा है। फिर चाहे वो राज कामिक्स की कार्यशैली की समीक्षा हो या आजकल चल रही कामिक्सों की कालाबाजारी की निंदा। अगस्त 2008 मे जब मैंने राज कामिक फारम को ज्वाईन किया था तब मेरा मकसद था कामिक्सों से जुडी हुई अपनी यादों को ताजा करना। लेकिन उसी साल अक्टूबर मे कुछ ऐसा हुआ कि कामिक्सों से जुडी हुई यादों को ताजा करने का एक और तरीका मिल गया। ये था पहला “नागराज जन्मोत्स”। और वो तरीका था कामिक्से संग्रह करने का।
2008 नागराज जन्मोत्सव मेरे लिए कई मायनों से यादगार और खास रहा। एक खास वजह तो ये ही थी कि मैं पहली बार अपने प्रिय चित्रकारों और लेखकों से मिल रहा था। लेकिन एक दूसरी वजह भी थी जिसने मेरे कामिक के जुनून को उस दिन कई गुणा बढा दिया। मैं पहली बार ऐसे कामिक फैन्स से मिला जिनमे मेरी ही तरह कामिक के लिए बेइतंहा दीवानापन था। यहां मैं रवि यादव का नाम लेना चाहूँगा जो उस भाग्यवादी दिन मुझे वहां मिला था। कामिक्सों के प्रति लोगो का प्यार देखकर मुझ मे और मेरे दोस्त आकाश मे एक नए जोश का संचार हुआ और इस कार्यक्रम से प्रेरित और उत्साहित हो कर हम दोनो ने अपने कामिक संग्रह को बढाने का निश्चय किया।
इससे पहले मेरे पास मुश्किल से 50 या उससे भी कम कामिक्से थी और वो भी सिर्फ ध्रुव की कामिक्से। इस वक्त मे एक बहुत कम वेतन वाली नौकरी कर रहा था। (जिसे मैंने नवम्बर 2008 मे छोड भी दिया था और उसके बाद 2 साल तक बेरोजगार रहा) और कामिक्से भी गिनी-चुनी लेता था। ध्रुव, नागराज की आंतकहर्ता और नागायाण सीरिज। हालांकि उस वक्त और भी अच्छी सीरिजे आ रही थी दूसरे हीरोज की लेकिन पैसे की कमी के चलते उन्हे प्राथमिकता देने मेरे बस की बात नही थी। तो अब ये तो सोच लिया था कि कामिक्से खरीदनी है लेकिन नई कामिक्सें खरीदना अभी हैसियत से बाहर था। तो ये निश्चय किया कि फिलहाल उन कामिक्सों को खरीदा जाए जिनको बचपन मे पढा था और जिनकी वजह से आज हम कामिक्सों पर इतनी चर्चा करने लायक बने। पुरानी कामिक/किताबों के बारे मे सोचते ही ध्यान आया दरियागंज की संडे बुक मार्केट का। मैं साल 2007 मे एक बार इस बुक मार्केट मे आया था और तब देखा था कि कामिक्से भी मिल रही थी। उस वक्त इनकी कीमत भी बहुत साधारण हुआ करती थी। अकसर आधे दाम पर मिल जाती थी। बिना किसी मोल-भाव के। तो मैंने और आकाश ने ये फैसला किया कि हम हर रविवार को मार्केट जाएंगे कामिक खरीदने। और इसका श्री गणेश भी साल 2008 के अंत से पहले हो भी गया।
शुरु मैं हमारी प्राथमिकता सिर्फ राज कामिक ही थी। क्योंकि उस वक्त कामिक खरीदने की मुख्य वजह उन्हे सिर्फ पढना ही था। यहां मैं एक बात बताना चाहूँगा कि मेरा कामिक संग्रहकर्ता बनने का कोई इरादा नही था। मुझे तो उस वक्त ये मालूम भी नही था कि लोग कामिक्सों का भी संग्रह करते है। मुझे 1-2 साल बाद इस बात का पता चला।
शुरुआत मे कामिक्सों की खरीदारी काफी धीमी रही। उसके एक वजह तो पैसे की कमी थी। मैं अपनी नौकरी छोड चुका था। और आगे भी दो साल तक बेरोजगार रहा। दूसरी वजह ये थी कि उस वक्त हम कामिक्से लेने मे बहुत ही नुख्ता-चीनी करते थे। मतलब कि सिर्फ वही कामिक्से ले रहे थे जिन्हे हम पसंद करते थे। यानि कि सिर्फ अपने प्रिय किरदारों की ही कामिक्से ले रहे थे जिनमे राज कामिक्स मे नागराज, ध्रुव आदि की कामिक्से ही मुख्य तौर पर शामिल थी। उस वक्त मनोज, तुलसी, राधा इत्यादि प्रकाशकों की कामिक्से भी मिलती थी लेकिन हमने उस वक्त उन पर कभी ज्यादा ध्यान नही दिया। कभी मन किया या कोई कामिक अच्छी लगी तभी उसे खरीदा वर्ना उन्हे छोड ही दिया। ये सब साल 2008-2009 के बीच हुआ। उस वक्त कामिक्से हम कम ढूंढ पाते थे लेकिन बाकी चीजो की खरीदारी पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे थे।
दरियागंज मे जब ज्यादा सफलता नही मिली तो मैंने अपने घर के आसपास कामिक्सों को तलाशना शुरु किया। किसी जमाने मे नांगलोई मे कामिक्सों की काफी दुकानें हुआ करती थी। और लगभग हर एक बुक डिपो वाले ने कभी ना कभी तो कामिक्से रखी ही थी अपने पास। लेकिन वक्त और तकनीक के साथ कामिक्से अपनी लय बरकरार नही रख पाई और धीरे-धीरे वहाँ कामिक्से दिखनी बंद हो गई। फिर भी मुझे कुछ दुकानों पर उनके मिलने की उम्मीद अभी भी थी। यही सोचकर एक दुकान पर पहुंचा। और वहां तो जैसे मुझे खजाना ही मिल गया। ज्यादातर राज कामिक थी और उन मे से मुझे मेरे प्रिय सुपर हीरो सुपर कमांडो ध्रुव की भी कुछ ऐसी कामिक्से मिल गई जो मैं ढूंढ रहा था। शाम को फोन करके मैंने आकाश को सारी बात बताई और अगले दिन वो भी मेरे घर आ गया कामिक्से लेने। उसने भी काफी सारी कामिक्से उस दुकान से ली। फिर मैंने कुछ और दुकानों पर भी भाग्य को आजमाया और सफलता भी मिली लेकिन बहुत थोडी सी। अब फिर से दरियागंज की तरफ रूख करना पडा। लेकिन अब वहां हमे अपने मतलब की कामिक्से बहुत कम ही मिल पा रही थी। इसलिए अब कामिक्सों को लेकर कुछ ज्यादा उत्साह नही रह गया था दरियागंज मे। ज्यादातर तफरी ही हो रही थी। सुबह पहुंच जाते वहाँ, और हर तरह की दुकान देखकर दोपहर तक वापिस भी आ जाते। और ऐसा साल 2010 के मध्य तक जारी रहा। लेकिन मैंने और आकाश ने दरियागंज जाना बंद नही किया। चाहे गर्मी हो, बारिश हो या सर्दी हो। या फिर 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे बडे अवसरों पर सुरक्षा के तहत बाजार ही क्यों ना बंद हो। हम जाते जरूर थे। बीच मे हमारा दोस्त रवि भी 1-2 बार हमारा साथ देने आया।
अब साल 2010 शुरु हो गया था और हम अपने नए घर मे चले गए थे। अब दरियागंज और भी दूर हो गया था। अब बाजार मे पहुंचने के लिए साईकल, रेल और पैदल यात्रा तीनों माध्यमों का इस्तेमाल हो रहा था। ये समय मेरे लिए काफी मुश्किल भरा था। क्योंकि इतनी मेहनत करने के बाद भी बाजार पहुंचने पर मुझे कुछ नही मिलता था। ऊपर से अब बेरोजगार हुए डेढ साल से ज्यादा हो गए थे और सेविंग भी खत्म होने लगी थी। इन्ही सब के बीच मे 2010 के शुरु के चार 4-5 महीने निकल गए। पैसे खत्म हो रहे थे, जोश दम तोड रहा था, और उम्मीद ना-उम्मीद मे तबदील हो रही थी।
मई का महीना चल रहा था और ऐसे ही खाली निकला जा रहा था। एक रविवार को मैंने आकाश से कहा कि यदि आज भी कोई कामिक बाजार मे नही मिली तो मैं अगले 3-4 रविवार बाजार नही आऊंगा। उसने भी मेरी बात का समर्थन किया। लेकिन जैसे उस दिन भगवान हमे पिछले डेढ साल की कडी मेहनत का फल देने वाला था। बाजार मे थोडा घूमने पर हमे एक जगह बहुत सारी कामिक्से नजर आई। वो भी मिंट कंडिशन मे। राज कामिक्स की बहुत सारी पुरानी कामिक्से जिसमे ध्रुव, नागराज, डोगा, जनरल, आदि सभी तरह की कामिक्से शामिल थी। हमारी तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा। कीमत भी बहुत ही साधारण। मात्र 5-10 रु। उस दिन मेरे पास जितने पैसे थे वो सारे कामिक खरीदने मे ही खर्च हो गए। लेकिन हमे ये मालूम नही था कि ये तो सिर्फ शुरुआत है और अगले 1-2 महीने तक हमे इतनी कामिक्से मिलने वाली है कि हमे पैसो की भारी कमी का सामना करना पडेगा। अगले हफ्ते जब हम फिर बाजार पहुंचे तो फिर से वही दुकानदार ढेर सारी कामिक्से लाया था। इस बार उनमे राज के अलावा मनोज, राधा, तुलसी, गोयल इत्यादि दूसरे प्रकाशकों की कामिक्से भी सब एकदम नयी कंडिशन मे। और सोने पर सुहागा ये कि उन कामिक्सों मे से कुछ के अंदर स्टीकर्स भी थे। मेरे पास जितने भी तुलसी कामिक्से के स्टीकर्स है वो सारे यही से ली गई कामिक्सों से है। अब तो जैसे एक नया जुनून सा सवार हो गया बाजार मे आने का। आने वाले 3-4 हफ्ते तक वो बंदा ढेरों कामिक्से लाता रहा और हम भी अपने बजट और जरूरत के हिसाब से कामिक्से खरीदते रहे। इसी बीच मैंने अपने दोस्त विशाल उर्फ बंटी को भी इस बारे मे बता दिया और वो और हमारा एक और दोस्त राहुल भी 1-2 बार कामिक्से लेने के लिए बाजार आए। बंटी को मैं अपने साथ कुछ और दुकानों पर भी लेकर गया और वहां से भी हमने बहुत सारी कामिक्से खरीदी। इसके साथ ही मेरी और आकाश की मुलाकात कुछ और भी कामिक्स प्रेमियों से हुई। आशीष त्यागी, प्रदीप शेहरावत और शाहिद अंसारी। (उस वक्त शाहिद अंसारी हमारे लिए फैन ही थे) इन लोगो के साथ मिलकर भी खूब सारी कामिक्से खरीदी। शाहिद अंसारी हमे एक दुकान पर भी लेकर गए जिसके पास बहुत सारी कामिक्से थी। वहां से मैंने अपने एक फारम के दोस्त अजय ढिल्ल्न के लिए भी बहुत सारी कामिक्से खरीदी। सब 5-10 रुपये मे। इसी बीच मेरे एक्जाम शुरु हो गए। एक्जाम के दिनों मे ही रवि, आकाश और बंटी उस दुकानदार के घर पर भी गए जो रविवार को बाजार मे कामिक्से लाता था और उसके घर से भी उन्होंने काफी कामिक्से खरीदी। बाद मैं फारम का एक और दोस्त (सुप्रतीम) जब अपनी छुट्टी मे दिल्ली आया तो मैंने और आकाश ने उसको बहुत सारी कामिक्से दिलवाई। कुछ तो रविवार बाजार से ही और काफी सारी उस दुकान से जिस पर शाहिद हमे लेकर गया था। इसके अलावा मैंने एक दुकान और ढूंढ ली थी जिस पर हमे काफी कामिक्से मिली। यहां से कामिक्से खरीदने वालो मे मेरे, आकाश और प्रदीप जी के अलावा शाहिद अंसारी भी थे। इस तरह मई से लेकर जुलाई-अगस्त तक कामिक्सों की काफी खरीदारी हुई। लेकिन अब समस्या ये आ गई कि मेरे पास सेविंग लगभग खत्म हो चुकी थी। नागराज जन्मोत्सव 2010 के बाद स्थिति ये आ गई थी कि अब नौकरी करना जरुरी हो गया था। अब दो साल होने वाले थे बिना किसी रोजगार के। नवम्बर 2010 मे एक नौकरी मिल गई और पैसों की चिंता कुछ हद तक खत्म हुई।
साल 2011 की शुरुआत पिछले साल से भी बेहतर रही। इस साल मार्च मे एक दुकानदार के काफी सारी कामिक्से आई थी। लेकिन उनमे से ज्यादातर शाहिद अंसारी ने ही ले ली थी। मुझे थोडी बहुत ही अपनी पसंद की कामिक्से मिली। लेकिन उस दुकानदार ने मुझे बताया कि उसके पास घर पर अभी और भी कामिक्से रखी हुई है। मैंने उसका पता और फोन नम्बर ले लिया और शनिवार को उसके घर गाजियाबाद जा पहुंचा। वहां से मैंने अपनी जिंदगी की अब तक की सबसे ज्यादा कामिक्से एक साथ खरीदी। और वो भी आधे दामों मे। उसके पास ज्यादातर राज कामिक्से ही थी। लेकिन उससे मुझे महारावण सीरिज की काफी सारी कामिक्से एक साथ मिल गई। और इसके साथ ही मुझे कनकपुरी की राजकुमारी भी मिली। साथ ही और भी बहुत सारी नई-पुरानी कामिक्से मिली। वो दिन एक यादगार दिन रहा मेरी जिंदगी का। पहली बार दिल्ली से बाहर जाकर कामिक्से खरीदना वाकई मेरे लिए एक बेहद खास अनुभव रहा। फिर आगे भी उस दुकानदार से बाजार मे ही कामिक्से लेते रहे जब तक कि उसके पास कामिक्से खत्म ना हो गई हो। इसके बाद शायद अगस्त-सितम्बर के बाद एक बार फिर से बहुत सारी कामिक्से बाजार आई। शुरु मे तो वो कामिक्सें हमे जायद दामों (5-10 रुपए) मे मिल गई। लेकिन जब अगले सप्ताह हम उन्ही दुकानदारों पर दुबारा पहुंचे तो सबने कीमत बढा कर बताई कुछ तो प्रिंट पर ही दे रहे थे। हमारे लिए ये पहला ऐसा मौका था जब हम कामिक्से महंगे दामों पर मिल रही थी। हम पुरानी कामिक्से हमेशा 5-10 रुपए मे ही लेते आए थे। अत:एव हमने वो कामिक्से नही खरीदी और उन्हे छोड दिया। बाद मे कामिक्सों के विक्रेताओं ने वो कामिक्से खरीदी। इसके बाद 2011 मे कुछ खास नही हुआ।
2012 मे तो याद भी नही कि कुछ खास हुआ था या नही। सिर्फ कामिक कान याद है। इसके अलावा महफूज भाई से मुलाकात हुई और उन्हे कोबी और भेडिया कामिक दी। साथ ही ध्रुव के कुछ विशेषांक भी महफूज को दिए थे। बदले मे महफूज ने भी मुझे कामिक्से दी। अब संडे मार्किट जाने का भी मन नही करता था। आकाश ने अब मार्किट आना बहुत कम कर दिया था। और मैं ही अकेला आता था। ऐसे ही एक बार 15-20 रुपए मे इंद्रजाल कामिक्से मिल गई थी। तकरीबन 25-35 कामिक्से थी और ज्यादातर अंग्रेजी मे ही थी। एक बार 40 के करीब टिंकल भी मिली थी। पुरानी टिंकल हिंदी और अंग्रेजी मे। 5 रुपए प्रति कामिक। कामिक्से अब कम मिल रही थी लेकिन उनकी कीमते फिर भी काफी नियंत्रण मे थी।
साल 2013 के शुरुआत मे ही मैंने ये मन बना लिया था कि अब ये आखिरी साल है कामिक्से कलैक्ट करने का। शुरुआत ठीक-ठाक रही। अप्रैल मे महफूज भाई का निमंत्रण मिला कि उनके शहर सहारनपुर मे काफी कामिक्से है मेरे लायक। वहां जाकर तकरीबन 1000 रु की कामिक्से खरीदी। सब प्रिंट रेट पर ली। बहुत ही बेहतरीन अनुभव रहा दूसरे शहर मे जाकर कामिक्से खरीदने का। बाद मे इसी महीने सागर राणा जी से भी मुलाकात हुई। वो दिल्ली आए हुए थे। उन्होंने मुझे जम्बू की पहली कामिक सुपर कम्पयूटर का बाप दी। महफूज भी उसी दिन दिल्ली आया और उसने भी उनसे मुलाकात करी। मैंने महफूज को कोहराम कामिक दी और बदले मे उसने मुझे बुद्धिपासा दी। वो दिन भी बहुत खास रहा। आकाश भी उस दिन सागर राणा जी से मिलने बाजार आ गया था। अप्रैल के बाद जुलाई मे मुझे गाजियाबाद वाले बंदे से बहुत सारी तुलसी कामिक्से मिली। सब आधे दाम मे। 250 रुपए मे 59 कामिक्से। जुलाई मे ही मेरी मुलाकात फारम मैम्बर स्पार्की रवि से हुई। उसी दिन मैं अयाज अहमद से भी मिला। फिर उसके अगले ही महीने मे मुझे बहुत सारी मनोज कामिक्से मिली। ज्यादातर विशेषांक ही थे। राम-रहीम, हवलदार बहादुर, क्रुकबांड, कांगा और दूसरे मनोज कामिक्स के किरदारों की तकरीबन 90 के करीब कामिक्से मैंने खरीदी। लेकिन ये खरीदारी अब तक की सबसे महंगी खरीदारी साबित हुई। क्योंकि मैंने हर कामिक के दुगने दाम दिए। यानि कि इस बार और पहली बार मैंने प्रिंट रेट से भी ज्यादा कीमत अदा करी। 10-20 रूपए। और जब मैंने ये फेसबुक पर पोस्ट किया तो एक दोस्त (मोहित शर्मा) को बहुत हैरानी हुई कि पुरानी कामिक्से इतनी महंगी कैसे हो गई? खैर वो कामिक्से खरीदकर मैं आकाश के पास गया और उसने उन मे कुछ कामिक्से ले ली। उस दुकानदार के पास अभी और भी बहुत कामिक्से बच गई थी। तो अगले सप्ताह मैं, आकाश और मोहनीश फिर वहां पहुंचे और आकाश और मोहनीश को अपनी पसंद की कामिक्से मिल गई। मोहनीश उस दिन बहुत खुश था क्योंकि उसकी महारावण सीरिज पूरी हो गई थी। इसके अगले रविवार भी हमने वहां से कुछ कामिक्से और खरीदी।
इसके बाद संडे मार्किट से कुछ नही मिला। फिर नवम्बर-दिसम्बर मे राज कामिक्से ने कामिक फेस्ट इंडिया का आयोजन किया। इस इवेंट मे राज कामिक्स ने पुरानी कामिक्सों का स्टाल लगा रहा था जहां पर 30 रुपए प्रति कामिक की दर से कामिक बेची जा रही थी। मैं ज्यादा कामिक्से नही खरीद सका और जो खरीदी भी उन मे से ज्यादातर उसी दाम पर बाद मे बेच भी दी। कामिक फेस्ट के बाद ही दोस्त की शादी मे नागपुर जाना पडा और वहां से भी थोडी बहुत कामिक्से खरीदी। अब साल का आखिरी महीना चल रहा था और आखिरी महीने के आखिरी रविवार मैं पूरा दिन वही मार्किट मे ही घूमता रहा। जैसे उस जगह से जुडी हुई सारी पुरानी यादों को इकट्ठा कर रहा था।
साल 2014 मे मैं दरियागंज काफी कम गया। अगर गया भी तो कामिक्स खरीदने के इरादे से नही और ज्यादातर शाम के वक्त ही गया। साल 2008 से 2013 तक मैंने काफी कामिक्से खरीदी और अब तो ऐसा लगता है कि हमने काफी अच्छे समय मे कामिक्सों का सग्रंह बनाया। आज के दौर मे तो मेरे लिए ये बिल्कुल ही नामुमकिन होता। फिलहाल मेरे संग्रह मे 2400 से ज्यादा कामिक्से है। हिंदी, अंग्रेजी, नई, पुरानी, ओरिजिनल, रिप्रिंट्स सब तरह की मिलाकर। सबसे ज्यादा कामिक्से राज कामिक्स की ही है। इसके अलावा स्टीकर्स, ट्रेडिंग कार्डस, पोस्टर और दूसरे तरह की कामिक्सों से जुडी हुई चीजो का भी अच्छा खासा क्लैक्शन है। काफी खुशी होती है अपना कामिक संग्रह देखकर। उसकी दो खास वजह है। पहली तो ये कि मैंने अपना कामिक क्लैक्शन बहुत ही मेहनत, ईमानदारी और किफायती कीमत पर बनाया है। इसमे जिन दोस्तो ने मदद करी उनका नाम मैं इस लेख मे लिख चुका हूँ। कोई रह गया है तो उसके लिए माफी चाहूँगा। कामिक संग्रह करते समय कभी भी कालाबाजारी को बढावा नही दिया। कभी ऊंचे दाम पर कामिक्से नही खरीदी। दूसरी वजह यह है कि मैं बचपन से ये चाहता था कि मेरे आस-पास ढेर सारी कामिक्से हो। अब जब अपनी अलमारी या अपन दिवान खोलकर देखता हूं तो पाता हूं कि जितना मैंने बचपन मैं सोचा था अब उससे कही गुना ज्यादा कामिक्से मेरे पास है। ये एक सपने को जीने के जैसा ही है।
मेरे कामिक संग्रह की एक और विशेषता ये भी है कि मेरे पास सबसे ज्यादा कामिक्से राज कामिक्स ही है लेकिन मेरे पास उनके किसी भी बडे किरदार की सारी कामिक्से नही है। यहां तक कि मेरे प्रिय पात्र सुपर कमांडो ध्रुव की भी मेरे पास सारी कामिक्से नही है। जबकि मनोज के 3-4 किरदारों की सारी कामिक्से मेरे पास है। 
wink emoticon
2008 से शुरु हुई मेरी कामिक की इस जुनूनी यात्रा के दौरान मुझे भारतीय कामिक जगत और कामिक क्लचर के बारे मे बहुत सी बाते जानने को मिली। बहुत से चित्रकारों और लेखकों से भेट हुई। काफी सारे कार्यक्रमों का हिस्सा बना। खासतौर से नागराज जन्मोत्सव और बुक फेयर। जहां तक मुझे याद है 2009 के बाद से ये पहला अवसर था जब इस साल मे अगस्त-सितम्बर बुक फेयर नही गया। काफी दोस्त बने और सब के साथ बहुत ही अदभुत अनुभव सांझा किए।
तो ये थी मेरे कामिक संग्रह की कहानी। कैसे शुरु हुआ, कहां से शुरुआत हुई, कैसे प्रगतिशील हुआ और कैसे अंत हुआ। कामिक क्लैक्ट करने का सफर तो साल 2013 मे खत्म हो गया। लेकिन कामिक पढने का शौक अभी भी जारी है। अब कामिक्सों पर ज्यादा चर्चा नही कर पाता लेकिन राज कामिक्स के नए सैट और नए प्रकाशकों की कामिक्से खरीदना और पढना अभी भी जारी है। और उम्मीद करता हूं कि जैसे पिछले 21 सालों से कामिक्से पढता आया हूँ वैसे ही आगे भी पढता रहूंगा।
जुनून।